17 Jun 2024 119 Views
22 जून को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक से पहले औद्योगिक संगठन सीआईआई के नवनियुक्त अध्यक्ष संजीव पुरी ने कहा है कि समय आ गया है कि अब पेट्रोल-डीजल के दाम को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इसके साथ ही उन्होंने बिजली और रियल एस्टेट जैसे आइटम को जीएसटी के दायरे में लाए जाने की बात कही।
औद्योगिक संगठन सीआईआई के नवनियुक्त अध्यक्ष संजीव पुरी ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन अभी बाकी है। तमाम आर्थिक स्थितियों को देखते हुए सीआईआई ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 में देश की जीडीपी विकास दर आठ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। आर्थिक विकास की रफ्तार को और तेज करने के लिए सीआईआई ने नई सरकार से भूमि, श्रम, बिजली, कृषि एवं राजकोषीय स्थिति जैसे मुद्दों पर राज्यों के साथ सहमति बनाने की मांग की है।
पुरी ने यह भी कहा कि अब पेट्रोलियम उत्पाद, बिजली और रियल एस्टेट जैसे आइटम को जीएसटी के दायरे में लाने का समय आ गया है। जीएसटी दरों के स्लैब को कम करके तीन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के साथ मानव पूंजी (ह्यूमन कैपिटल) के सृजन की आवश्यकता है। इस वास्ते शिक्षा पर होने वाले खर्च को अगले तीन साल में जीडीपी के 4.4 प्रतिशत तक ले जाना होगा जो अभी तीन प्रतिशत के पास है।
सीआईआई के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में कृषि और सर्विस सेक्टर का प्रदर्शन गत वित्त वर्ष 2022-23 से भी बेहतर रहेगा, लेकिन औद्योगिक उत्पादन में पिछले वित्त वर्ष से कमी आ सकती है। गत वित्त वर्ष में कृषि सेक्टर की विकास दर 1.4 प्रतिशत थी जो चालू वित्त वर्ष में 3.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सर्विस सेक्टर में चालू वित्त वर्ष में 9.0 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो सकती है। पिछले वित्त वर्ष में यह दर 7.9 प्रतिशत थी। वहीं औद्योगिक उत्पादन की विकास दर गत वित्त वर्ष के 9.3 प्रतिशत के बजाए चालू वित्त वर्ष में 8.4 प्रतिशत रह सकती है।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत में टैक्स की दर को कम रखकर भी अधिक राजस्व का संग्रह किया जा सकता है। आर्थिक विशेषज्ञों के समूह थिंक चेंज फोरम (टीसीएफ) की तरफ से विकसित राष्ट्र बनने के लिए प्रगतिशील कराधान व्यवस्था पर आयोजित चर्चा में यह बात सामने आई कि सरकार को टैक्स दर की जगह टैक्स से मिलने वाले राजस्व पर फोकस करना चाहिए। टैक्स दर को कम करने से टैक्स का बेस (आकार) बढ़ेगा।
चर्चा में यह बात सामने आई कि वर्ष 2017 में जीएसटी के तहत 60 लाख करदाता पंजीकृत थे जो वर्ष 2023 में 1.40 करोड़ हो गए और वर्ष 2023 के जून तक 114 करोड़ से अधिक रिटर्न दाखिल किए जा चुके थे। इस मौके पर ईवाई इंडिया के सीनियर पार्टनर सुधीर कपाडि़या ने कहा कि अब समय आ गया है कि जीएसटी प्रणाली में स्लैब की संख्या कम की जाए। इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ मिलने में कोई बाधा नहीं हो।
उन्होंने कहा कि आयकर राजस्व में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन हमें करदाताओं के टैक्स से जुड़े प्रशासनिक अनुभव पर फोकस करना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि टैक्स फाइलिंग की प्रक्रिया सरल व सुगम हो। आर्बिट्रेज रिसर्च इंस्टीट्यूट के सह-संस्थापक निदेशक कौशिक दत्ता ने कहा कि कर विवाद में फंसी राशियों को अनलॉक करने एवं अपील के स्तर पर लंबित मामलों को सुलझाना महत्वपूर्ण है। वर्ष 2022 के मार्च तक 14.2 लाख करोड़ रुपए के मूल्य वाले पांच लाख से अधिक मामले अनसुलझे थे।